Aazadi

मैं जंगल में नन्हा पंछी, बैठा था अपने घोसले में
माँ सुबह बोलके गई थी, बेटा कही ना जाना ।।
माँ जा रही है करने काम, लेके आएगी मीठे आम ।।

जलता सूरज ढलने लगा, पर माँ न आई लौट
हुई मुझे उसकी चिंता, जा कूदा मैं अपने घोसले से ।।
उड़ना सिखा था ना कभी, जा गिरा मैं जमीन पे ।।

पास में जा रहा था इंसानी बच्चा, उससे लगाई मैने गुहार मदत की
उसने मुझे प्यार से उठाया, और पटक दिया पिंजरे में ।।
ले गया वह उसके बस्ती, न जाने बदले कितने हाथ ।।

आखिर में जा पहुंचा एक बड़े से इंसानी पिंजरे में
रोता रहा, चिल्लाता रहा, मैं अपनी आज़ादी के लिए ।।
पर वह लेता रहा मज़े, समज के इसे मेरे गीत ।।

आखिर मेने ठान लिया, करूँगा मैं इसका विरोध
ना खाया, ना बोला, जब तक न खुला पिंजरे का द्वार ।।
जब मिला यह मौका, लगा मैं कूदने दौड़ने ।।

पंख फड़फड़ा के ख़ुशी में, जल्द ही लगा मैं उड़ने
देखते देखते निकला मैं इस बड़े पिंजरे  से दूर ।।
प्यारी थी वह उड़ान, मीठी थी यह आज़ादी ।।


Thanks to my Hindi Guru - Surya, for correcting mistakes

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